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Sutradhar Mini Tales (हिन्दी)

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Sutradhar Mini Tales (हिन्दी)

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धन और समृद्धि के देवता कुबेर को अपनी समृद्धि पर बड़ा घमण्ड हो गया। वो अपना वैभव सभी देवताओं को दिखाने के लिए उनको अपने महल में आमंत्रित कर बड़े ही धूमधाम से उनका सत्कार करते। उन्होंने महादेव और पार्वती माता को भी कई बार आमंत्रित किया पर वो कभी कु
अनलासुरअनलासुर यमराज के शरीर से उत्पन्न एक भयानक असुर था जो अपने नेत्रों से भयानक अग्नि की वर्षा कर अपने सामने आने वाली किसी भी वस्तु को भस्म कर सकता था। जब अनलासुर अपनी अग्नि से संसार में विनाश फैलाने लगा तो देवगुरु बृहस्पति के परामर्श पर सभ
अपने दोनों पुत्रों हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप के मरने के बाद देवी दिति शोकाकुल हो गयीं और इन्द्र से बदला लेने के लिए उन्होंने अपने पति कश्यप ऋषि को प्रसन्न कर ऐसे पुत्र की कामना की जो इन्द्र का वध कर सके। दिति का अभिप्राय जानकर इन्द्र वेश बदलक
कश्यप ऋषि की पत्नी देवी अदिति को विवस्वान, अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, इन्द्र और त्रिविक्रम पुत्र हुए। ये बारह आदित्य कहलाये। इनमें से त्वष्टा का विवाह दैत्यों की छोटी बहन रचना से हुआ, जिनसे उनको दो पुत्र हुए
प्राचीन काल में कान्यकुब्ज नगर में अजामिल नामक एक ब्राह्मण रहता था। अजामिल सब सदाचार भूलकर जुआ और लूटमार करके अपना घर चलाता था। इस प्रकार दुराचार करते हुए उसका सारा जीवन बीत गया। अजामिल को दस पुत्र हुए, जिनमें सबसे छोटे पुत्र का नाम था “नाराय
दक्ष प्रजापति का पुनर्जन्ममहाराज पृथु के बाद उनके पुत्र विजिताश्व राजा हुए, उनके पुत्र हविर्धान के पुत्र थे बर्हिषद। बर्हिषद का विवाह समुद्र की कन्या शतद्रुति से हुआ, जिनसे उनको दस पुत्र प्राप्त हुए। इन दस पुत्रों को प्रचेता कहते हैं। इन प्रच
हनुमान जी और महादेवपद्म पुराण के अनुसार श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ के समय, देवपुर के राजा और महादेव के परम भक्त राजा वीरमणि ने यज्ञ के अश्व को रोक लिया। इस कारण शत्रुघ्न और भरत के पुत्र पुष्कल के नेतृत्व में श्रीराम की सेना का वीरमणि की सेना से
जब मेघनाद से युद्ध के समय लक्ष्मण भी मूर्छित हो गए तब सुषेण वैद्य ने उनके उपचार के लिए संजीवनी बूटी लाने का सुझाव दिया। द्रोण पर्वत से संजीवनी बूटी लाने का कार्य हनुमान जी को दिया गया, क्योंकि उनकी असीमित गति के कारण एक वही इस कार्य को समय पर क
हनुमान जी और महाबली भीम दोनों वायुदेव पवन के पुत्र हैं। जब हनुमान जी ने अपने छोटे भाई में अपने बल का घमण्ड पनपते देखा तो वो उनको सीख सिखाने के लिए प्रकट हुए। एक बार पाण्डवों के वनवास के समय हनुमान जी भीम के रास्ते में एक वृद्ध वानर के रूप में
जब अर्जुन को अपनी धनुर्विद्या पर अभिमान हो गया तब हनुमान जी ने प्रकट होकर उनको विनम्रता का पाठ पढ़ाया। अर्जुन अपनी तीर्थयात्रा के समय रामेश्वरम पहुँचे और श्रीराम सेतु को देखकर सोचने लगे कि श्रीराम इतने प्रतिभाशाली धनुर्धर थे, उनको इस सेतु को ब
कौरवों की माता गांधारी ने महाभारत युद्ध के लिये श्रीकृष्ण को जिम्मेदार ठहराते हुए उन्हें श्राप दे दिया कि जिस प्रकार कुरुवंश का नाश हुआ है, ठीक उसी प्रकार से यदु वंश का भी नाश होगा। गांधारी के श्राप के कारण श्रीकृष्ण द्वारका लौटकर यदुवंशीयों को
महाभारत युद्ध के अन्त में जब अश्वत्थामा ने पाण्डव पुत्रों का वध किया तब पाण्डव भगवान कृष्ण के साथ अश्वत्थामा का पीछा करते हुए ऋषि वेदव्यास के आश्रम पहुंच गए। अश्वथामा ने पाण्डवों पर ब्रह्मास्त्र का वार किया तो अर्जुन ने भी अपना ब्रह्मास्त्र छोड
महाभारत के शन्ति पर्व के अनुसार जब युद्ध समाप्त होने के बाद कुंती ने युधिष्ठिर को यह बताया कि कर्ण तुम्हारा बड़ा भाई था तो सभी पाण्डवों को बहुत दुख हुआ। युधिष्ठिर ने तब पुरे विधि विधान के साथ कर्ण का भी अन्तिम संस्कार किया। इतनी बड़ी बात छिपाने
महाभारत युद्ध से पहले जब अर्जुन दिव्यास्त्र प्राप्त करने स्वर्ग गए तो वहां अप्सरा उर्वशी उन पर मोहित हो गयी। अर्जुन ने जब उन्हें अपनी माता के समान बताया तो यह सुनकर उर्वशी क्रोधित हो गयी और अर्जुन को श्राप दे डाला कि तुम नपुंसक की भांति बात कर
एक बार महाराज पाण्डु शिकार खेलने वन गए। झाड़ियों के पीछे कुछ हिल रहा था। मृग है सोचकर राजा ने बाण चलाया जो जाकर ऋषि किन्दम और उनकी पत्नी को लगा। वे दोनों मृग के वेश में रति-क्रीड़ा में लिप्त थे।जब राजा ने उन्हें देखा तो बहुत दुखी हुए कि ये मुझ
भगवान परशुराम और कार्तवीर्य अर्जुन के बीच युद्ध के समय कार्तवीर्य के सैनिक ऋषियों के आश्रमों पर आक्रमण करने लगे। जब भगवान परशुराम ने कार्तवीर्य का वध कर दिया तो उसके पुत्रों ने ऋषियों को अपना निशाना बनाया। इसी प्रकरण में एक बार उन्होंने पाराश
एक बार यमुना नदी के तट पर विचरण करते हुए पाराशर ऋषि की भेंट मछुआरे की पुत्री मत्स्यगंधा से हुई। पाराशर ऋषि मत्स्यगंधा के रूप पर मोहित हो गए और उनके साथ संभोग की इच्छा व्यक्त की। मत्स्यगंधा ने नदी के किनारे खड़े लोगों को दिखाते हुए लज्जा की बात
Parashara grew up thinking, his grandfather Brahmarshi Vashishtha was his father. When he found out the truth and that his father and uncles were killed by a demon under the influence of rishi Vishwamitra, he decided to conduct a yajna to exter
एक बार ब्रह्मर्षि वशिष्ठ के पुत्र शक्ति महर्षि एक सँकरे पहाड़ी रास्ते से कहीं जा रहे थे। रास्ते में उनकी भेंट सामने से आते हुए राजा कल्माषपाद से हुई। कौन पहले रस्ता पार करे इस बात पर दोनों में विवाद छिड़ गया। दोनों का विवाद इतना बढ़ गया की कल्माषप
उत्तराखंड में स्थित पंच केदार को हिन्दू धर्म में अहम मान्यता दी जाती है. पंच केदार दरअसल पांच मंदिरों का समाहार है जो कि महादेव के नंदी स्वरूप को समर्पित है. शिवजी के साथ यहां माता पार्वती की भी पूजा की जाती है. महाभारत युद्ध के उपरांत पांडव अप
तमिलनाडु के अन्नामलाई पहाड़ के पददेश पर स्थित यह मंदिर महादेव के अग्नि लिंग स्वरुप को समर्पित है. कहा जाता है की शिवजी यहाँ माता पार्वती के साथ अपने अर्धनारीश्वर रूप में वास करते हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब ब्रह्मा और विष्णु के बीच में
लक्ष्मणा मद्र की राजकुमारी थीं और श्रीकृष्ण से प्रेम करती थीं तथा उनसे विवाह करना चाहती थीं। जब लक्ष्मणा के पिता ने अपनी पुत्री के लिए स्वयंवर का आयोजन किया तो धनुर्विद्या की परीक्षा रखी। लक्ष्मणा के स्वयंवर में उपस्थित जरासंध और दुर्योधन परी
मित्रविन्दा अवन्ती की राजकुमारी थीं। उनके भाई विन्द और अनुविन्द उनका विवाह दुर्योधन के साथ करना चाहते थे और वो श्रीकृष्ण के शत्रु थे। इसलिए जब मित्रविन्दा के स्वयंवर का आयोजन हुआ तब श्रीकृष्ण को आमंत्रित नहीं किया गया। बलराम ने श्रीकृष्ण से क
ब्रह्मदेव के पुत्र महाबली जांबवान की पुत्री थीं जाम्बवन्ती। स्यामन्तक मणि की खोज के समय श्रीकृष्ण और जांबवान का भीषण द्वन्द्व हुआ जो कई दिनों तक चला। अंततः महाबली जांबवान को आभास हो गया की यह श्रीराम के ही अवतार हैं। उन्होंने श्रीकृष्ण से क्षमा
भूदेवी का अवतार देवी सत्यभामा अंधकवंशी यादव राजा सत्रजित की पुत्री थीं। सत्रजित से प्रसन्न होकर सूर्यदेव ने उनको बहुमूल्य स्यामन्तक मणि दी थी। उस मणि के खो जाने पर सत्रजित ने श्रीकृष्ण पर चोरी का आरोप लगाया। श्रीकृष्ण ने इस आरोप से मुक्त होने
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