किसी तालाब में तीन मछलियाँ अनागतविधाता, प्रत्युत्पन्नमति और यद्भविष्य रहती थीं। एक दिन उस तालाब को देखकर मछुआरों ने कहा, “अहो! इस तालाब में तो बहुत सारी मछलियाँ हैं। हम कल यहाँ जरूर आयेंगे।“ उनकी बातों को सुनकर अनागतविधाता ने सभी मछलियों को बुलाकर कहा, “क्या आपलोगों ने मछुआरों की बात सुनी? हमें उनसे बचने के लिए आज रात में पास के तालाब चले जाना चाहिये।“
अनागतविधाता की बात सुनकर बाकी मछलियाँ बोलीं, “हम अपना घर छोड़कर किसी नई जगह नहीं जा सकते।“
प्रत्युत्पन्नमति ने कहा, “किसी नई जगह में नई कठिनाइयाँ हो सकती हैं, हमें यहीं रहकर मछुआरों से बचने का प्रयास करना चाहिए।“
यद्भविष्य बोली, “जो भाग्य में लिखा है वो तो होकर ही रहेगा। इस तरह कुछ भी प्रयास करना व्यर्थ है।“
अनागतविधाता अपने परिवार को लेकर रात में ही दूसरे तालाब चली गयी।
अगले दिन जब मछुआरों ने जाल बिछाया तो प्रत्युत्पन्नमति और यद्भविष्य के साथ अन्य मछलियाँ जाल में फंस गयीं।
प्रत्युत्पन्नमति ने जाल में फंस जाने पर मरने का नाटक किया। मछुआरों ने मरी हुई मछली देखी तो उसे फिर से पानी में फेंक दिया और यद्भविष्य और अन्य मछलियों को लेकर चले गए।
इसीलिए कहते हैं कि विपत्ति के लिए पहले से तैयारी करने वाले और विपत्ति आने पर उससे बचने का प्रयास करने वाले सुरक्षित रहे हैं और भाग्य पर सब कुछ छोड़ देने वाले नष्ट हो जाते हैं।
Podchaser is the ultimate destination for podcast data, search, and discovery. Learn More